अभिषेक उपाध्याय। लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद उत्तर प्रदेश में बीजेपी आत्मचिंतन में है। .इस बीच उत्तर प्रदेश बीजेपी ने पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को चुनाव में प्रदर्शन को लेकर एक विस्तृत रिपोर्ट सौंपी है. इसमें हार के कारणों की जानकारी दी गई है.इनमें पेपर लीक,सरकारी नौकरियों के लिए संविदा कर्मियों की नियुक्ति और राज्य प्रशासन की कथित मनमानी जैसी चिंताओं का जिक्र है। बीजेपी की समीक्षा रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रतियोगी परीक्षाओं में पेपर लीक का मुद्दा काफी बड़ा हो गया। इस मुद्दे ने भाजपा को लोकसभा चुनाव में काफी नुकसान पहुंचाया। युवाओं के साथ-साथ उनके परिवारी जन के वोट भी बीजेपी से दूर हुए। यूपी में सरकारी अधिकारियों से कार्यकर्ताओं की नाराजगी काफी ज्यादा थी।
लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी-कांग्रेस गठबंधन ने राज्य की 80 में से 43 सीटों पर जीत दर्ज की थी। वहीं बीजेपी के नेतत्व वाले एनडीए के हिस्से में केवल 36 सीटें आई हैं.एनडीए ने 2019 के चुनाव में 64 सीटों पर जीत दर्ज की। इस हार के बाद उत्तर प्रदेश बीजेपी ने 15 पेज की एक विस्तृत रिपोर्ट पार्टी नेतृत्व को भेजी है। सूत्रों के मुताबिक पार्टी के प्रदर्शन का आकलन करने के लिए करीब 40 हजार लोगों की राय ली गई। इस दौरान अयोध्या और अमेठी जैसे प्रमुख निर्वाचन क्षेत्रों पर विशेष ध्यान दिया गया।
भाजपा ने जातीय समीकरणों पर पूरी पकड़ नहीं बनाई। पार्टी ने 16 ब्राह्मण,13 ठाकुर, कुर्मी व पासी छह-छह, लोधी चार, जाट, खटीक, निषाद समाज के तीन-तीन उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था। इसके अलावा गुर्जर, जाटव, बनिया समाज के दो-दो, कश्यप, पंजाबी, पारसी, सैनी, धनगर, वाल्मीकि, धानुक, कोरी, गोंड, यादव, शाक्य, कुशवाहा, भूमिहार व तेली समाज से एक-एक उम्मीदवार को चुनावी मैदान में उतारा था। वहीं सपा ने केवल पांच यादव को छोड़कर बाकी सभी समाज के उम्मीदवारों का चयन किया। ये भी बीजेपी पर भारी पड़ा।
अधिकारियों की मनमानी के कारण यूपी में कार्यकर्ता चुनाव के समय में उदासीन हो गए। समीक्षा में यह भी कहा गया है कि सरकारी विभागों में कॉन्ट्रैक्ट से भर्ती और आउटसोर्सिंग की गई। इससे भी कार्यकर्ताओं और वोटरों में नाराजगी थी। भाजपा की हार में एक बड़ा कारण हिंदू मतदाताओं के बीच बंटवारा रहा। एक तरफ जहां कांग्रेस व सपा ने अल्पसंख्यकों खासकर मुस्लिमों को एकजुट कर लिया तो वहीं भाजपा हिंदुओं को एकजुट कर पाने में सफल नहीं हो पाई। राम मंदिर जैसे मुद्दे का प्रभाव कम होना भी इसका बड़ा कारण माना जा रहा है।