2022 साल का दो दिन में सामपन हो जाएगा। एक जनवरी से फिर से नया साल आएगा। नया साल किसके लिए कितना फायदेमंद और किसे नुकसान पहुंचाएगा, ये तो वक्ता ही बताएगा। 31 दिसंबर को 2022 की विदाई हो जाएगी। पूरे साल में कहां उठा-पटक हुई और यूपी की सियासत ने कैसे करवट ली, इस बारे में हम आपको विस्तार से बताएंगे। यूपी में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने साल 2022 की शुरुआत में हुए राज्य विधानसभा चुनाव में बड़ी जीत के साथ ही 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए अपनी जमीन पुख्ता कर ली और आजमगढ़ व रामपुर में समाजवादी पार्टी (सपा) के गढ़ में सेंध लगाने में भी सफल रही।
भाजपा ने रामपुर में सपा के कद्दावर नेता आजम खां के गढ़ पर कब्जा जमा लिया। आजम के प्रतिनिधित्व वाली रामपुर लोकसभा सीट को हासिल करने के बाद पार्टी ने रामपुर सदर विधानसभा क्षेत्र के लिए हुआ उपचुनाव भी जीता। हालांकि, सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के निधन से रिक्त हुई मैनपुरी लोकसभा सीट के उपचुनाव में हार से भाजपा की जीत का सिलसिला टूट गया। इसके साथ ही खतौली विधानसभा क्षेत्र, जहां 2017 और 2022 के विधानसभा चुनावों में भाजपा को जीत मिली थी, वह भी उपचुनाव में पार्टी के हाथ से फिसल गई।
इस साल कथित गैंगस्टर की संपत्तियों को ध्वस्त करने के लिए बुलडोजर के इस्तेमाल और वाराणसी और मथुरा में मंदिर-मस्जिद विवाद का मामला भी सुर्खियों में रहा। अखिलेश यादव के नेतृत्व में एक बार फिर सरकार बनाने की सपा की उम्मीदों पर पानी फेरते हुए भाजपा ने फरवरी-मार्च में संपन्न विधानसभा चुनावों में महत्वपूर्ण जीत दर्ज की, जिससे योगी आदित्यनाथ की लगातार दूसरे कार्यकाल के लिए मुख्यमंत्री के रूप में वापसी का मार्ग प्रशस्त हुआ। हालांकि, 2017 के विधानसभा चुनाव के मुकाबले सपा ने इस साल विधानसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन किया। पार्टी ने 2017 में मिली 47 सीटों के मुकाबले इस बार 403 में से 111 सीटों पर जीत हासिल की। हालांकि, दो अन्य राष्ट्रीय दलों को जबरदस्त झटका लगा और कांग्रेस प्रदेश में दो सीटों, जबकि बहुजन समाज पार्टी (बसपा) एक सीट पर सिमट गई।
मैनपुरी के करहल से सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के विधायक बनने और रामपुर से आजम खां के विधानसभा सदस्य चुने जाने के बाद लोकसभा में रिक्त हुई इनके प्रतिनिधित्व वाली आजमगढ़ और रामपुर सीट पर हुए उपचुनाव में भाजपा ने जीत हासिल की। बाद के उपचुनाव में मुस्लिम बहुल रामपुर सदर विधानसभा सीट पर भी भाजपा ने जीत दर्ज की, जो लगभग 45 वर्षों तक आजम का गढ़ रही थी। भाजपा के आकाश सक्सेना ने आजम के करीबी आसिम राजा को हराया। विधानसभा सदस्यता से आजम को अयोग्य ठहराए जाने के बाद वहां उपचुनाव हुआ था। जिले की सांसद-विधायक अदालत ने आजम को घृणा भाषण मामले में तीन साल के लिए कारावास की सजा सुनाई थी। एक अन्य मामले में दोषसिद्धि के कारण मुजफ्फरनगर के खतौली से दो बार के भाजपा विधायक विक्रम सिंह सैनी को विधायक के रूप में अयोग्य घोषित कर दिया गया था। राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) ने सपा के समर्थन से भाजपा द्वारा मैदान में उतारी गई सैनी की पत्नी राजकुमारी को हराकर खतौली उपचुनाव जीता।
उत्तर प्रदेश में अगले साल शहरी स्थानीय निकाय चुनाव होने हैं। इस हफ्ते की शुरुआत में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इन चुनावों में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए सीटें आरक्षित करते समय सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देशों का पालन नहीं करने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा एक चुनावी मसौदा अधिसूचना को रद्द कर दिया। इस मामले को लेकर विपक्षी दलों, खासकर सपा ने भाजपा पर निशाना साधते हुए उसे ‘ओबीसी विरोधी’ करार दिया है। हालांकि, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि निकाय चुनाव ओबीसी आरक्षण के साथ ही होंगे। अदालती फैसला आने के एक दिन बाद योगी सरकार ने पिछड़ों के आरक्षण की प्रक्रिया को पूरी करने के लिए एक आयोग नियुक्त किया।
2022 के विधानसभा चुनाव के दौरान सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव की पहल पर मतभेद भुलाकर एक हुए अखिलेश यादव और शिवपाल सिंह यादव के बीच तकरार और इकरार पूरे साल चलता रहा। लेकिन, 10 अक्टूबर को मुलायम के निधन से खाली हुई मैनपुरी लोकसभा सीट के उपचुनाव के लिए चाचा-भतीजा (शिवपाल-अखिलेश) सभी मतभेद भुलाकर साथ आए तो सपा उम्मीदवार डिंपल यादव की वहां से रिकॉर्ड मतों से जीत हुई। 2019 में मुलायम ने मैनपुरी सीट 90 हजार से अधिक मतों के अंतर से जीती थी, लेकिन इस वर्ष उपचुनाव में पांच दिसंबर को हुए मतदान में डिंपल यादव ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी भाजपा के रघुराज सिंह शाक्य को दो लाख 88 हजार से अधिक वोटों के अंतर से पराजित किया।
शिवपाल ने मुलायम की ‘विरासत’ की रक्षा के लिए मैनपुरी में अखिलेश की पत्नी डिंपल के लिए प्रचार किया। प्रचार के दौरान अखिलेश ने भी अपने चाचा के पैर छुए। योगी के दूसरे कार्यकाल में कथित अपराधियों और दंगों में शामिल लोगों की संपत्तियों पर बुलडोजर चलाए गए, जिससे मुख्यमंत्री को ‘बाबा बुलडोजर’ की उपाधि मिली। सरकार के निशाने पर अपराध से राजनीति की दुनिया में आए पूर्व विधायक मुख्तार अंसारी और पूर्व सांसद अतीक अहमद जैसे लोग रहे। वहीं, विपक्ष ने भाजपा सरकार पर मुख्य रूप से मुसलमानों को निशाना बनाने का आरोप लगाया। हालांकि, सरकार का कहना था कि ये संपत्तियां अवैध रूप से तैयार की गई थीं और इन्हें गिराने में हर बार कानूनी प्रक्रिया का पालन किया गया।
उत्तर प्रदेश सरकार ने मस्जिदों और अन्य धार्मिक स्थलों पर लगे लाउडस्पीकर को या तो हटा दिया या उनकी आवाज धीमी कर दी। सड़कों और अन्य सार्वजनिक स्थलों पर नमाज अदा किए जाने से जुड़े मामलों में भी अधिकारियों ने तेजी से कार्रवाई की। 2022 में अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को गति मिली और श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने कहा कि भक्त जनवरी 2024 में वहां पूजा-अर्चना कर सकेंगे। लेकिन अयोध्या में पांच एकड़ की जमीन पर एक नयी मस्जिद (धन्नीपुर) का निर्माण शुरू होना बाकी है। दरअसल, इंडो-इस्लामिक फाउंडेशन इस बाबत अयोध्या विकास प्राधिकरण द्वारा भवन योजनाओं को मंजूरी देने की प्रतीक्षा कर रहा है।
अयोध्या भूमि विवाद पर वर्ष 2019 के उच्चतम न्यायालय के फैसले ने उस स्थान पर राम मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया था, जहां 1992 में बाबरी मस्जिद को गिराया गया था। अदालत ने नयी मस्जिद के निर्माण के लिए भूमि आवंटित करने का भी आदेश दिया था। वहीं, ज्ञानवापी मस्जिद-काशी विश्वनाथ मंदिर विवाद इस साल फिर सुर्खियों में आया, जब वाराणसी की एक अदालत ने मंदिर के बगल में स्थित मस्जिद का वीडियोग्राफी सर्वेक्षण करने की अनुमति दे दी। जिला अदालत ने मस्जिद की दीवार पर मूर्तियों के सामने दैनिक प्रार्थना की अनुमति मांगने वाली महिलाओं की याचिका पर सुनवाई के दौरान यह आदेश दिया।
वहीं, कृष्ण जन्मभूमि-ईदगाह मस्जिद विवाद से जुड़े मामलों की सुनवाई मथुरा की अदालतों के साथ-साथ उच्च न्यायालय में भी हो रही है। उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्यभर में निजी मदरसों के सर्वेक्षण का आदेश दिया, जिससे कुछ समय के लिए विवाद शुरू हो गया। सरकार ने कहा कि यह सुनिश्चित करने की योजना है कि विज्ञान और कंप्यूटर जैसे अहम विषय भी वहां पढ़ाए जाएं। अयोध्या में सरयू नदी के तट पर दीपोत्सव (जिसके तहत दिवाली से पहले घाटों पर मिट्टी के लाखों दीये जलाए जाते हैं) के अलावा राज्य ने इस साल तमिलनाडु और वाराणसी के बीच सांस्कृतिक बंधन को प्रदर्शित करने वाले एक महीने के काशी-तमिल संगमम की भी मेजबानी की। 2022 में लखनऊ के लेवाना सूट होटल में आग लगने से चार लोगों की मौत हो गई और कम से कम 10 घायल हो गए। इस हादसे ने राज्य में अग्नि सुरक्षा मानदंडों के प्रति लापरवाही को उजागर किया। वर्ष 2022 का अंत होते-होते राज्य सरकार ने फरवरी 2023 में एक वैश्विक शिखर सम्मेलन के लिए निवेशकों को आमंत्रित करने के वास्ते अपने मंत्रियों के समूह को विदेश भेजा।