UP Assembly Election: इस बार किसे चुनेगी झांसी की जनता? ब्राह्मण को फिर से देंगे मौका या दलित-पिछड़े को पहुंचाएंगे विधानसभा

0
241

झांसी। उत्तर प्रदेश में बुंदेलखंड की हृदयस्थली मानी जाने वाली वीरांगना नगरी झांसी की सदर विधानसभा सीट पर अभी तक ब्राह्मणों का ही वर्चस्व रहा है। पार्टी चाहे कोई भी हो लेकिन ब्राह्मणों का संख्याबल अधिक होने के कारण इस सीट पर उनका दबदबा रहा है। वर्ष 1951 से अस्तित्व में आई इस सीट पर दो उपचुनाव मिलाकर 19 बार हुए मतदान में 15 बार ब्राह्मण उम्मीदवार को ही जनता ने सिर आंखों पर बैठाया है। सदर विधानसभा सीट पर जातीय समीकरण कुछ इस प्रकार है कि यहां पर ब्राह्मण जनसंख्या करीब 80-90 हजार, अनुसूचित जाति एवं जनजाति करीब 70 हजार, मुस्लिम एवं कुशवाहा करीब 60-60 हजार, साहू 50 हजार, वैश्य 30 हजार और यादव करीब 20 हजार के आसपास हैं।

वर्ष 1951 में पहली बार कांग्रेस पार्टी के आत्माराम गोविंद खैर ने झांसी विधानसभा का प्रतिनिधत्वि किया। उस समय झांसी की सदर विधानसभा सीट झांसी ईस्ट के नाम से जानी जाती थी और उन्होंने अपने निकटतम प्रतद्विंदी नर्दिलीय उम्मीदवार अयोध्या प्रसाद को शिकस्त दी थी। वर्ष 1957 में एक बार फिर कांग्रेस का जादू चला और आत्मा राम गोविंद खेर को ही विधायक चुना गया। इस बार पराजित होने वाले पन्ना लाल शर्मा रहे वह भी नर्दिलीय उम्मीदवार थे। 1962 में बाजी पलट गयी और इस बार कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार आत्माराम गोविंद खेर को नर्दिलीय लखपत राम शर्मा से मात खानी पड़ी लेकिन 1967 में कांग्रेस ने वापसी करते हुए जीत हासिल की। इस बार कांग्रेस उम्मीदवार उदित नारायण शर्मा ने जनसंघ के उम्मीदवार एमपी अग्निहोत्री को पराजित किया।

इसके बाद 1969 में भारतीय क्रांति दल के जगमोहन वर्मा को यहां से विजय प्राप्त हुई जबकि कांग्रेस के केसी पंगोरिया के हाथ पराजय लगी। वर्ष 1974 में कांग्रेस के उम्मीदवार बाबूलाल तिवारी को विधायक चुना गया। वहीं जनसंघ के त्रिभुवन नाथ त्रिवेदी को हार का सामना करना पड़ा। वर्ष 1977 में जनता पार्टी की सूर्यमुखी शर्मा ने कांग्रेस के मेघराज कुशवाहा को हराया था, 1980 में राजेन्द्र अग्निहोत्री ने भाजपा में पदार्पण किया और भाजपा से जीत हासिल की। उन्होंने अपने प्रतद्विंद्वी कांग्रेस उम्मीदवार चौधरी मोहम्मद महमूद को हराया। 1985 में कांग्रेस की यहां फिर से वापसी हुई और इस बार कांग्रेस के उम्मीदवार ओपी रिछारिया को विजय हासिल हुई जबकि उनसे त्रिभुवन नाथ त्रिवेदी हार गए। वह भाजपा के उम्मीदवार थे। ओमप्रकाश रिछारिया को मंत्री बनाया गया था।

वर्ष 1989 में भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस को शिकस्त देते हुए फिर बाजी मारी और झांसी को रवद्रिं शुक्ला के रूप में विधायक मिला। उन्होंने ओ पी रिछारिया को पराजित किया था। जीत का क्रम जारी रखते हुए 1991 में रविंद्र शुक्ल ने फिर जीत हासिल की जबकि कांग्रेस के मुख्तार अहमद को उनसे करारी शिकस्त मिली। 1993 में एक बार फिर रवद्रिं शुक्ला भारतीय जनता पार्टी का परचम लहराने में सफल रहे जबकि उनसे कांग्रेस के उम्मीदवार रमेश शर्मा हार गए। रवद्रिं शुक्ल ने भाजपा की जीत का चौथी बार भी क्रम जारी रखा और 1996 में जीत हासिल की। इस बार उन्हें शिक्षा मंत्री भी बनाया गया। उन्होंने बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार जयप्रकाश साहू को हराया था, लेकिन 2002 में राष्ट्रीय पार्टियों को मात देते हुए बहुजन समाज पार्टी से रमेश शर्मा ने जीत हासिल की और उन्होंने रविंद्र शुक्ला को हरा दिया। उन्हें मंत्री भी बनाया गया लेकिन 2004 में उन्होंने पार्टी से अनबन होने के चलते इस्तीफा दे दिया।

इस बार उपचुनाव में नए चेहरे के रूप में प्रदीप जैन आदित्य ने कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में विजय प्राप्त की और बसपा के बृजकिशोर व्यास उर्फ भुल्लन महाराज को शिकस्त का सामना करना पड़ा। वर्ष 2007 में हुए विधानसभा चुनाव में दूसरी बार प्रदीप जैन ने जीत दर्ज की और उनसे हारने वाले फिर रमेश शर्मा थे जोकि बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार रहे। श्री जैन 2009 तक विधायक रहे लेकिन 2009 में उन्हें लोकसभा उम्मीदवार बनाया गया और वह कांग्रेस से सांसद बन गए। जिसके चलते 2009 में फिर उपचुनाव हुआ। इस बार बीएसपी से कैलाश साहू ने बाजी मारी और अपने निकटतम प्रतिद्वंदी निर्दलीय उम्मीदवार बृजेंद्र व्यास उर्फ डमडम महाराज को शिकस्त दी। उसके बाद 2012 भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार रवि शर्मा ने उस समय विजय हासिल की जब बुंदेलखंड की 19 विधानसभाओं में एकमात्र सीट भाजपा जीत सकी थी। हारने वाले बसपा के सीताराम कुशवाहा रहे। वर्ष 2017 में भाजपा के रवि शर्मा ने जीत का अंतर कई गुना बढ़ा दिया और एक बार फिर से बसपा के सीताराम कुशवाहा को करारी शिकस्त दी।

इस प्रकार अब तक दोनों उपचुनाव को मिलाकर झांसी सदर विधानसभा सीट के लिए कुल 19 बार चुनाव हुए हैं। इनमें से 15 बार ब्राह्मण उम्मीदवारों को जीत मिली है जबकि एक बार जगमोहन वर्मा, दो बार प्रदीप जैन आदत्यि और एक बार कैलाश साहू को जनता के जीत का आशीर्वाद मिला है। इस वर्ष झांसी की जनता किसको जीत का सेहरा पहनाती है यह देखना बड़ा दिलचस्प होगा। इस सीट पर यहां भाजपा, सपा और बसपा ने अपने पत्ते खोल दिये हैं लेकिन जीत का समीकरण बैठाने में फंसी कांग्रेस अब भी अपने उम्मीदवार का चयन साफ नहीं कर पायी है। भाजपा ने इस सीट पर दो बार जीत दर्ज कर चुके ब्राह्मण चेहरे रवि शर्मा पर ही दांव खेला है जबकि सीताराम कुशवाहा को टिकट देकर समाजवादी पार्टी पिछड़े और मुस्लिम वोटों के सहारे जीत हासिल करने की कवायद में जुटी है। बसपा ने कैलाश साहू को टिकट दे दलित के साथ पिछड़े वोटों के सहारे जीत की उम्मीद संजोयी है।

Previous articleउत्तराखंड विधानसभा चुनाव: टिकट न मिलने से उठने लगे बगावती सुर, रूठे नेताओं को मनाने में जुटी भाजपा और कांग्रेस
Next articleयूपी के इस जिले में सियासी घमासान, सपा की कम नहीं हो रही मुश्किलें, जानें वजह

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here