उत्तराखंड उच्च न्यायालय में सुनवाई के लिए एक अनोखा मामला आया, जिसमें एक व्यक्ति ने पत्नी से तनावपूर्ण संबंधों के कारण अपने सेवा रिकॉर्ड में पत्नी की जगह सास का नाम ‘नॉमिनी’ के रूप में दर्ज कराया था और इसी आधार पर व्यक्ति की मृत्यु के बाद वन विभाग ने उसकी विधवा के अनुकंपा नियुक्ति के दावे को खारिज कर दिया। विधवा ने विभाग के इस निर्णय को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय में याचिका दायर की, जिसकी सुनवाई न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की एकल पीठ के समक्ष हुई। पीठ ने वन विभाग को निर्देश दिया कि चूंकि विभाग मृत कर्मचारी की सामान्य भविष्य निधि (जीपीएफ) की एक राशि उसकी विधवा को जारी कर चुका है, जिससे याचिकाकर्ता को कर्मचारी की पत्नी के रूप में मान्यता मिल चुकी है, इसलिए अब विभाग को कानून के अनुसार तीन महीने के भीतर अनुकंपा नियुक्ति के दावे पर निर्णय लेना चाहिए।
याचिकाकर्ता ने कहा कि उसके पति किशन सिंह धपोला वन विभाग में चौकीदार के रूप में कार्यरत थे और सेवा में रहते हुए 2020 में उनका निधन हो गया था। याचिकाकर्ता ने विभाग से अनुकंपा नियुक्ति, पारिवारिक पेंशन और अन्य सेवा लाभों का अनुरोध किया था। राज्य सरकार की ओर से अदालत को बताया गया कि याचिकाकर्ता और उसके पति के बीच संबंध तनावपूर्ण थे, और याचिकाकर्ता ने पूर्व में भरण-पोषण का मामला भी दायर किया था। राज्य की ओर से यह भी कहा गया कि विभाग ने अनुकंपा नियुक्ति के लिए उसके नाम पर विचार करने से इसलिए इनकार किया क्योंकि धपोला के सेवा रिकॉर्ड में पत्नी की जगह सास का नाम ‘नॉमिनी’ के रूप में दर्ज था। हालांकि, राज्य ने यह स्वीकार किया कि जीपीएफ राशि का एक हिस्सा याचिकाकर्ता को जारी किया गया है।
उच्च न्यायालय ने कहा कि जब विभाग ने जीपीएफ राशि का हिस्सा जारी कर याचिकाकर्ता को धपोला की पत्नी के रूप में मान्यता दी है, तो उसके अनुकंपा नियुक्ति के दावे पर भी विचार किया जाना चाहिए। अदालत ने वन विभाग को निर्देश दिया कि वह याचिकाकर्ता के अनुकंपा नियुक्ति के दावे की समीक्षा करे और तीन महीने के भीतर कानून के अनुसार उचित आदेश पारित करे।

