समाजवादी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस जैसे विपक्षी दलों ने मंगलवार को केंद्र सरकार को आड़े हाथ लेते हुए आरोप लगाया कि बड़े उद्योगपति आराम से कर्ज लेकर देश से बाहर चले जाते हैं, वहीं दूसरी तरफ छात्रों को शिक्षा ऋण नहीं मिल पाता। लोकसभा में बैंककारी विधियां (संशोधन) विधेयक, 2024 पर चर्चा में भाग लेते हुए समाजवादी पार्टी (सपा) के सांसद राजीव रॉय ने डॉलर के मुकाबले रुपये के कमजोर होने का हवाला देते हुए भाजपा नेताओं पर निशाना साधा और कहा कि अब ”किसी का ‘स्वाभिमान’ नहीं गिर रहा है।” उन्होंने कहा कि एक तरफ विद्यार्थियों को शिक्षा ऋण प्राप्त करने में बहुत दिक्कत होती है, लेकिन बड़े व्यापारी आराम से कर्ज ले लेते हैं और देश से बाहर भी चले जाते हैं।
चर्चा में भाग लेते हुए तृणमूल कांग्रेस के सांसद कल्याण बनर्जी ने आरोप लगाया कि इस सरकार में बातें होती हैं, लेकिन काम नहीं होता है। उन्होंने दावा किया कि यह विधेयक बैंकों के निजीकरण की दिशा में बढ़ाया गया कदम है। बनर्जी ने कहा कि साइबर अपराधों और वित्तीय जालसाजी को रोकने के लिए सरकार को ठोस कदम उठाने की जरूरत है। शिवसेना (उबाठा) के अनिल देसाई ने सवाल उठाया कि विधेयक में सहकारी समितियों से जुड़ा प्रावधान क्या किसी विशिष्ट व्यक्ति को लाभान्वित करने के लिए तो नहीं है। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एसपी) की सदस्य सुप्रिया सुले ने विधेयक का समर्थन करते हुए सरकार से मांग की कि जब कोई वित्तीय धोखाधड़ी होती है तो आरोपी की गिरफ्तारी से पहले सुनिश्चित किया जाए कि वह लोगों का बकाया वापस करे।
भाजपा और उसके सहयोगी दलों ने इस विधेयक को बैंकिंग प्रणाली को मजबूत करने वाला बताया। तेदेपा के डी प्रसाद राव ने कहा कि यह विधेयक नागरिकों को सशक्त बनाने और बैंकिंग प्रणाली को मजबूत करने वाला है। जदयू के आलोक कुमार सुमन ने दूरदराज के गांवों में बैंकों की शाखा खोलने और बैंकों में खाली पड़े स्थायी पदों को भरे जाने की मांग की। उन्होंने कहा कि शिक्षा ऋण को सरल बनाकर अधिक से अधिक लोगों को दिया जाना चाहिए। शिवसेना के रवींद्र वायकर ने सहकारी बैंकों को मजबूती करने की जरूरत बताई। भाजपा के कोंडा विश्वेश्वर रेड्डी ने भी चर्चा में भाग लिया।