यूपी विधानसभा के नॉन स्टॉप सत्र में जमकर हुई राजनीति

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अभिषेक उपाध्याय। उत्तर प्रदेश विधानसभा का मानसून सत्र 11 अगस्त से शुरू हुआ, जो 16 अगस्त तक चलेगा। इस सत्र का सबसे बड़ा आकर्षण 13 अगस्त सुबह 11 बजे से 14 अगस्त दोपहर 2 बजे तक चली 27 घंटे की नॉन-स्टॉप चर्चा रही, जिसमें ‘विकसित भारत-विकसित उत्तर प्रदेश-2047’ विजन डॉक्यूमेंट पर बहस हुई। यह पहली बार था जब सदन में इतनी लंबी निरंतर कार्यवाही चली, लेकिन विपक्ष ने इसे ‘प्रचार का स्टंट’ बताकर सरकार को घेरा। समाजवादी पार्टी (सपा) और कांग्रेस ने सत्र की अवधि बढ़ाने की मांग की, ताकि वास्तविक मुद्दों पर चर्चा हो सके।

सत्र के पहले ही दिन हंगामा मच गया। सपा विधायकों ने सदन के बाहर बैनर और तख्तियां लेकर प्रदर्शन किया, जिनमें लिखा था, ‘आप चलाइए मधुशाला, हम चलाएंगे पीडीए पाठशाला’। विपक्ष ने बिजली निजीकरण, स्कूल मर्जर, कानून-व्यवस्था, महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर सरकार को कटघरे में खड़ा किया। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने विधायकों को निर्देश दिए कि आक्रामक तरीके से इनका जवाब मांगा जाए। दूसरे दिन पत्रकारों की सुरक्षा और फतेहपुर के मकबरा-मंदिर विवाद पर हंगामा हुआ।

नॉन-स्टॉप सत्र के तीसरे दिन सपा नेता शिवपाल यादव ने तीखा प्रहार किया। उन्होंने कहा, ‘2047 का सपना छोड़िए, 2025 की हकीकत बताइए।’ उन्होंने अस्पतालों में स्ट्रेचर की कमी, पेड़ से टंगी सलाइन और टूटी बेंचों पर पढ़ते बच्चों का जिक्र कर सरकार को ललकारा। ‘गरीबी हटाओ का लॉन्ग टर्म प्लान’ बताकर उन्होंने गरीबी उन्मूलन के वादों पर तंज कसा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जवाब में सपा पर निशाना साधा, ‘लोकतंत्र और सपा नदी के दो किनारे हैं।’ उन्होंने कहा कि सरकार जनहित पर सार्थक चर्चा चाहती है।

सत्र में छह महत्वपूर्ण अध्यादेश पेश हुए, जिनमें बांके बिहारी मंदिर न्यास अध्यादेश प्रमुख रहा। उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने कहा, ‘हम विपक्ष के सवालों का जवाब देने को तैयार हैं।’ लेकिन सदन की गरिमा बनाए रखने के बावजूद हंगामे ने सत्र को राजनीतिक रंग दिया। यह नॉन-स्टॉप सत्र न केवल विकास विजन पर केंद्रित रहा, बल्कि विपक्ष की आक्रामकता ने 2027 चुनावों की झलक दिखाई। कुल मिलाकर, यह सत्र लोकतंत्र की जीवंतता का प्रतीक बना, जहां बहस ने जनता के मुद्दों को उभारा। (शब्द संख्या: 298)

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