भारत में मखाने का उत्पादन 2020 से 2025 के बीच दोगुनी होकर लगभग 63,000 टन तक पहुंच गयी है। मखाने की खेती का रकबा 40 से 50 प्रतिशत तक बढ़ा और पैदावार मखाना कारोबार को बढ़ाने के सरकार के प्रयास के बीच इसके नर्यिात में भी जोरदार उछाल दर्ज किया गया है। भारत विश्व का सबसे बड़ा मखाना उत्पादक देश है। एपीडा के अनुसार देश से मखाने का नर्यिात तेज़ी से बढ़ने के मद्देनजर 2020 में मखाना निर्यात 6,700 टन हुआ था जबकि 2024 में यह बढ़कर 25,130 टन तक पहुंच गया है। दुनिया के देशों में इसके प्रमुख खरीदार अमेरिका, कनाडा, यूएई, जर्मनी और ऑस्ट्रेलिया हैं। हाल में अमेरिका के लगाए गए अधिक आयात शुल्कों के बावजूद यूरोप, दक्षिण एशिया और अफ्रीका में इसके नए बाजार और नए अवसर बन रहे हैं। विदेशों के अलावा मखाने का घरेलू बाजार भी खासा मजबूत है।
वर्ष 2021-22 से 2024-25 तक मखाना उद्योग 17 से 18 प्रतिशत सालाना दर से बढ़ा और इसका कारोबार 8,000-8,500 करोड़ रुपये तक पहुंच गया। बढ़ती सेहत-जागरूकता और प्रीमियम स्नैकिंग की मांग से मखाना एक महंगे ‘सुपरफूड’ के रूप में उभर रहा है। भारत की मखाना खेती का केंद्र बिहार है। इसकी हिस्सेदारी देश के कुल उत्पादन में लगभग 90 प्रतिशत और विश्व आपूर्ति में 80-85 प्रतिशत तक है। साल 2020 से 2025 के बीच मखाना की खेती का रकबा 25,000 हेक्टेयर से बढ़कर 40,000 हेक्टेयर पर पहुंच गया और उत्पादन का कांटा 63,000 टन पर आ गया। पारंपरिक तालाब-आधारित खेती के साथ-साथ खेत-आधारित और मछली-संयुक्त प्रणालियाँ किसानों को अधिक उत्पादन और मुनाफ़ा दे रही हैं। मखाना अब केवल बिहार की पारंपरिक फसल नहीं, बल्कि भारत की वैश्विक ‘ब्रांड पहचान’ बन चुका है।
आधुनिक किस्में जैसे ‘स्वर्ण वैदेही’ और ‘सबौर मखाना-1’ ने इसकी उत्पादकता में सुधार किया है, जबकि ‘मिथिला मखाना’ के जीआई टैग ने इसे अंतरराष्ट्रीय पहचान दी है। मखाना साल भर चलने वाली जल-निर्भर फसल है। पौधों की रोपाई मार्च में की जाती है और अगस्त से अक्टूबर के बीच फसल की कटाई की जाती है। जून-जुलाई में फल पानी के भीतर पकते हैं। अगस्त में बीजों को तालाब के तल से निकाला जाता है। यह बहुत कठिन काम है, जिसे पूरी तरह हाथों से किया जाता है। यही कारण है कि खेती का यह तरीका बहुत मेहनत की मांग करता है इसलिए इसमें मशीनों के इस्तेमाल एवं तकनीकी सुधार की बड़ी संभावनाएं हैं। बिहार सरकार ने वर्ष 2025-26 के बजट में मखाना बोर्ड की स्थापना की घोषणा की है, जिसका बजट एक अरब रुपये रखा गया है। यह बोर्ड किसानों को बेहतर बीज, आधुनिक तकनीक, प्रशिक्षण, बाज़ार सहायता और स्थानीय प्रसंस्करण इकाइयां उपलब्ध कराने पर काम करेगा। इससे किसानों की आय में वृद्धि होगी और बिचौलियों पर निर्भरता घटेगी। साथ ही, यह बोर्ड मखाना को देश-विदेश में एक प्रीमियम ब्रांड के रूप में प्रचारित करने पर भी ध्यान केंद्रित रहेगा।

