इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार को पहले के एक फैसले का अनुपालन सुनिश्चित करने को कहा है जिसमें राज्य सरकार में प्रत्येक विभागाध्यक्ष को अगले 12 से 18 महीने में सेवानिवृत्त होने जा रहे राजपत्रित और गैर राजपत्रित कर्मचारियों की हर छह महीने में एक सूची बनाकर रखने का निर्देश दिया गया था। अदालत ने यह निर्देश इसलिए दिया था ताकि कर्मचारी के सेवानिवृत्त होने पर तत्काल उसकी पेंशन जारी होना सुनिश्चित हो सके। अदालत ने राम कुमार नाम के एक सफाई कर्मचारी की रिट याचिका निस्तारित करते हुए यह टिप्पणी की।
राम कुमार 2020 में सेवानिवृत्त हो गए, लेकिन आज की तिथि तक पेंशन सहित सेवानिवृत्ति उपरांत लाभ उन्हें नहीं दिया गया। गत मंगलवार को उक्त निर्देश पारित करते हुए न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेंद्र ने कहा, वर्षों तक सेवानिवृत्त कर्मचारियों के सेवानिवृत्ति लाभ को रोके रखना न केवल अवैध और मनमानापूर्ण है, बल्कि एक पाप है। सेवानिवृत्त कर्मचारियों का इस तरह से उत्पीड़न करने वाले अधिकारियों को ऐसा पाप करने से डरना चाहिए। यह निर्देश देते हुए अदालत ने मुक्ति नाथ राय बनाम उत्तर प्रदेश सरकार (1992) के मामले का हवाला दिया जिसमें उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार के अधीन सभी विभागों को सेवानिवृत्ति उपरांत बकाया लाभों को जारी करने के लिए सभी औपचारिकताएं तेजी से पूरी करने का आदेश दिया था।
अदालत ने कहा, अनुभव के आधार पर अत्यधिक पीड़ा के साथ यह देखा गया है कि सामान्य आदेश का विभागों द्वारा अनुपालन नहीं किया जा रहा है। इसलिए इस अदालत में सेवानिवृत्ति उपरांत लाभ के दावों वाले हजारों रिट याचिकाएं लंबित हैं। अदालत ने बिजनौर जिले के श्योहारा स्थित नगर पालिका परिषद के कार्यकारी अधिकारी को सर्वोच्च प्राथमिकता के साथ इस मामले को देखने और 15 अक्टूबर, 2023 तक देय लाभों पर निर्णय करने का निर्देश दिया। इसके अलावा, अदालत ने उच्च न्यायालय के महानिबंधक को इस आदेश की एक प्रति उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को भेजने का निर्देश दिया जिससे राज्य सरकार के नियंत्रण अधीन सभी विभागों को आवश्यक सर्कुलर जारी किया जाए और इस अदालत के आदेश का अनुपालन सुनिश्चित हो सके।