प्रयागराज। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण करने के बावजूद एक विद्यार्थी को एमए पाठ्यक्रम में शामिल होने की अनुमति नहीं देने पर इलाहाबाद विश्वविद्यालय (इविवि) प्रशासन को विद्यार्थी को 50,000 रुपये का हर्जाना देने का निर्देश दिया है। न्यायमूर्ति आशुतोष श्रीवास्तव ने अजय सिंह नाम के विद्यार्थी द्वारा दायर रिट याचिका निस्तारित करते हुए यह आदेश पारित किया। विश्वविद्यालय प्रशासन को हर्जाने की रकम याचिकाकर्ता को देने का निर्देश देते हुए अदालत ने कहा, “इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने चयन प्रक्रिया शुरू करने के बाद पात्रता के नियमों में परिवर्तन की पहल की।
संशोधित नियम याचिकाकर्ता के मामले में लागू नहीं किए जा सकते। विश्वविद्यालय की यह कार्रवाई कानून के विपरीत है इसलिए इसे खारिज किया जाता है। याचिका के मुताबिक, याचिकाकर्ता ने अकादमिक सत्र 2022-23 के लिए महिला अध्ययन में एमए पाठ्यक्रम के लिए प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण की थी। हालांकि, विश्वविद्यालय प्रशासन ने इस आधार पर याचिकाकर्ता की उम्मीदवारी खारिज कर दी कि याचिकाकर्ता, इस विश्वविद्यालय द्वारा 25 जून 2022 को तय पात्रता को पूरा नहीं करता है जिसकी अधिसूचना 29 जुलाई 2022 को जारी की गई थी। याचिकाकर्ता के वकील ने कहा,“ विश्वविद्यालय ने स्पष्ट रूप से गलती की है और उसे अपात्र बना दिया। खेल के नियम, खेल शुरू होने के बाद नहीं बदले जा सकते। उन्होंने कहा कि स्नातकोत्तर प्रवेश परीक्षा की अधिसूचना जारी कर दी गई थी और ऑनलाइन पंजीकरण 11 जून 2022 को शुरू हुआ और पंजीकरण और शुल्क भुगतान की अंतिम तिथि एक जुलाई 2022 थी।
अदालत ने 10 जनवरी के अपने आदेश में कहा, “याचिकाकर्ता ने सत्र 2022-23 में प्रवेश के लिए आवेदन किया था। यह सत्र पहले ही ना केवल शुरू हो चुका है, बल्कि समाप्त होने के करीब है। इसलिए विश्वविद्यालय को याचिकाकर्ता को प्रवेश देने के लिए उसकी उम्मीदवारी पर विचार करने का निर्देश देना निरर्थक होगा। अदालत ने कहा, हालांकि, अदालत को लगता है कि याचिकाकर्ता को काफी तकलीफ उठानी पड़ी और उसे अनावश्यक रूप से मुकदमेबाजी में घसीटा गया है और उसे तीन अवसरों पर इस अदालत से संपर्क करने के लिए बाध्य किया गया। अदालत ने कहा, इस अदालत के विचार से याचिकाकर्ता मुआवजा पाने का हकदार है। विश्वविद्यालय याचिकाकर्ता को एक पखवाड़े के भीतर 50,000 रुपये हर्जाना देगा।