मानव तस्करी विरोधी थानों को मजबूत करें, शीघ्र प्राथमिकी दर्ज करें एवं बचाव सुनिश्चित करें: डीजीपी

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लखनऊ। उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) राजीव कृष्ण ने बुधवार को सभी वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को मानव तस्करी के सिलसिले में सबंधित(एएचटी) थानों को मजबूत बनाने तथा लापता बच्चों के मामलों की त्वरित एवं प्रभावी जांच कर बचाव सुनिश्चित करने का निर्देश दिया। एक सरकारी बयान के अनुसार सभी जोन के अपर पुलिस महानिदेशकों, पुलिस आयुक्तों, रेंज महानिरीक्षकों, उपमहानिरीक्षकों, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षकों और पुलिस अधीक्षकों को जारी किये गये निर्देश डीजीपी ने उनसे यह सुनिश्चित करने को कहा कि एएचटी थाने अपने निर्धारित उद्देश्य के लिए विशेष रूप से संचालित हों एवं उनमें जरूरी सुविधाएं हों।

मानव तस्करी को एक ”वैश्विक संगठित अपराध” बताते हुए, डीजीपी ने कहा कि यौन शोषण, जबरन श्रम, अवैध गोद लेने, भीख मांगने, अंग व्यापार या नशीली दवाओं की तस्करी के लिए तस्करी महिलाओं और बच्चों के मौलिक मानवाधिकारों का उल्लंघन है। डीजीपी ने कहा, ”हर जिले में एक मानव तस्करी विरोधी इकाई (एएचटीयू) स्थापित की गई है, जिसे अब वाहनों, कंप्यूटरों, कैमरों, वायरलेस सेट और अन्य आवश्यक बुनियादी ढांचे के साथ एक पूर्ण थाने का रूप दिया गया है।” गृह मंत्रालय के दिशानिर्देशों का हवाला देते हुए, डीजीपी ने निर्देश दिया कि प्रत्येक एएचटी थाने में कम से कम एक निरीक्षक, दो उपनिरीक्षक, दो मुख्य आरक्षी और दो आरक्षी होने चाहिए तथा जरूरत के आधार पर अतिरिक्त मानव संसाधन भी होना चाहिए।

उन्होंने कहा कि मानव तस्करी निरोधक थानों में तैनात अधिकारियों को कानून-व्यवस्था या नियमित गश्ती ड्यूटी में नहीं लगाया जाना चाहिए। बयान के अनुसार, डीजीपी उन्होंने यह भी निर्देश दिया कि मानव तस्करी निरोधक थानों के संसाधनों का उपयोग तस्करी से संबंधित मामलों के अलावा किसी अन्य उद्देश्य के लिए नहीं किया जाना चाहिए। कृष्णा ने आदेश दिया कि मानव तस्करी निरोधक थानों में प्राप्त होने वाली सभी शिकायतों पर बिना किसी देरी प्राथमिकी दर्ज की जानी चाहिए तथा तत्काल जांच और तलाशी/बचाव अभियान चलाया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा,”यदि किसी स्थानीय थाने में मानव तस्करी से संबंधित शिकायत प्राप्त होती है, तो प्राथमिकी वहीं दर्ज की जानी चाहिए और उसकी एक प्रति शिकायतकर्ता को दी जानी चाहिए। इसके बाद, शिकायतकर्ता को उचित सूचना देते हुए, मामला 24 घंटे के भीतर जिला मानव तस्करी निरोधक थाने को स्थानांतरित किया जाना चाहिए।” उन्होंने निर्देश दिया,”स्थानीय थानों में दर्ज गुमशुदा व्यक्तियों के मामले में बाद में तस्करी के सबूत सामने आने पर उन्हें जिला पुलिस प्रमुख या आयुक्त के आदेश पर मानव तस्करी निरोधक थाने को स्थानांतरित किया जाना चाहिए।” पुलिस प्रमुख ने यह भी निर्देश दिया कि मानव तस्करी के पीड़ितों को संबंधित विभागों के साथ समन्वय करके उचित पुनर्वास, चिकित्सा उपचार, परामर्श, निःशुल्क कानूनी सहायता, आश्रय और मुआवज़ा प्रदान किया जाए। डीजीपी ने कहा कि आयुक्तों और जिला पुलिस प्रमुखों को मासिक अपराध बैठकों के दौरान मानव तस्करी निरोधक से संबंधित मामलों और बचाव कार्यों की समीक्षा करनी चाहिए।

उन्होंने आगे कहा, ”यदि तस्करी का कोई मामला छह महीने से ज़्यादा समय तक अनसुलझा रहता है, तो जांच और बचाव प्रयासों की तिमाही समीक्षा की जानी चाहिए।” उन्होंने चेतावनी दी कि तलाशी या बचाव अभियान चलाने में किसी भी तरह की लापरवाही के लिए मामला स्थानांतरित करने वाले स्थानीय थाने और संबंधित एएचटी अधिकारियों, दोनों की कड़ी जवाबदेही तय की जाएगी।

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