कानून की पढ़ाई में क्षेत्रीय भाषाओं को ध्यान में रखा जाना चाहिए : सीजेआई चंद्रचूड़

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भारत के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति धनन्जय वाई. चंद्रचूड़ ने शनिवार को ज़ोर देकर कहा कि कानून की पढ़ाई के दौरान क्षेत्रीय भाषाओं को ध्यान में रखा जाना चाहिए। यहां राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय के तृतीय दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, “कानूनी क्षेत्र में अंग्रेजी भाषा पर जोर दिया गया है। उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय में मामलों की सुनवाई अंग्रेजी भाषा में होती है। कई बार ऐसा होता है कि अपना केस लेकर आए आम नागरिक यह नहीं समझ पाते कि अदालत में क्या बहस हो रही है।” उन्होंने कहा, “हाल ही में मैंने कई ऐसे निर्देश दिए हैं जिससे न्याय प्रक्रिया को आम लोगों के लिए आसान बनाया जा सके।

उदाहरण के तौर पर, उच्चतम न्यायालय के निर्णयों का विभिन्न भाषाओं में अनुवाद किया जा रहा है, जिससे आम जनता समझ सके कि निर्णय में आखिर क्या लिखा है।” न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, “हाल ही में उच्चतम न्यायालय के अनुसंधान विभाग ने 81 विश्वविद्यालयों और कॉलेजों का सर्वेक्षण किया और विश्लेषण में पाया गया कि आम जनता को अंग्रेजी भाषा ना जानने की वजह से अपने अधिकारों और उससे जुड़ी योजनाओं को समझने में बाधा महसूस होती है। इसका अर्थ है कि विधि विश्वविद्यालय में कानून की पढ़ाई अंग्रेजी में होती है और कई बार छात्र विधिक सहायता केंद्रों में कानूनी प्रक्रिया को आम जनता को समझा नहीं पाते।” उन्होंने कहा, “यहां मैं किसी को दोष नहीं दे रहा हूं, बल्कि मेरा ज़ोर इस बात पर है कि कानून की पढ़ाई की प्रक्रिया में क्षेत्रीय भाषाओं को भी ध्यान में रखना चाहिए।

क्षेत्रीय मुद्दों से जुड़े कानूनों को भी हमारे विश्वविद्यालयों में पढ़ाया जाना चाहिए।” न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, “मान लीजिए कि पड़ोस के गांव से कोई व्यक्ति आपके विश्वविद्यालय के विधिक सहायता केंद्र में आता है और अपनी जमीन से जुड़ी समस्या बताता है। लेकिन यदि छात्र को खसरा और खतौनी का मतलब नहीं पता तो छात्र उस व्यक्ति की कैसे मदद करेगा।” उन्होंने कहा, “उत्तर प्रदेश आकर मुझे एहसास हुआ कि लोगों के लिए उनकी जमीन कितनी महत्वपूर्ण है। मैंने देखा कि कानूनी भाषा में ताल या तलैया का क्या मतलब और महत्व है।” प्रधान न्यायाधीश ने कहा, “मैं दोहराना चाहता हूं कि मैं यह नहीं कह रहा कि कानूनी शिक्षा से अंग्रेजी को हटा देना चाहिए, बल्कि अंग्रेजी के साथ-साथ क्षेत्रीय भाषाओं को भी अपनाना चाहिए।” विविधताओं पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा, “हमारा देश, विविधताओं से भरा है।

चाहे वह भाषा के आधार पर हो या क्षेत्र के आधार पर। उत्तर प्रदेश में ही विभिन्न बोलियां हैं। ऐसी स्थिति में मेरे दिमाग में एक सवाल आता है कि कैसे न्याय और संविधान के मूल्य लोगों तक पहुंचाए जा सकते हैं।” उन्होंने कहा, “दुनिया के कई देशों में कानूनी शिक्षा और विधिक कार्यवाही क्षेत्रीय भाषाओं में हैं जिससे यह सुनिश्चित होता है कि सभी नागरिकों की ना केवल विधिक प्रणाली तक पहुंच हो, बल्कि वे अधिवक्ता और न्यायाधीश बनने की आकांक्षा रखें।” इस अवसर पर, प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली, इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर अमर पाल सिंह मौजूद थे।

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