प्रयागराज। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने फैसला दिया है कि चूंकि अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति किया जाना एक कल्याणकारी उपाय है, इसलिए मृतक के पात्र आश्रित के लिए नियुक्ति प्रक्रिया में छूट दी जा सकती है। न्यायमूर्ति अजय भनोट ने अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति को लेकर एक मृतक कर्मचारी की मां और पत्नी के बीच हुए विवाद पर सुनवाई करते हुए यह फैसला सुनाया। न्यायमूर्ति भनोट ने अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति की मांग से संबंधित पत्नी नैना गुप्ता की याचिका स्वीकार कर ली। न्यायाधीश ने कहा, “अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति के लिए पात्र व्यक्ति को हलफनामा देकर मृतक के अन्य आश्रितों की वित्तीय जरूरतों का ध्यान रखने का वचन देना होता है, जिसे बदला नहीं जा सकता।
उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता गुप्ता ने पहले ही अपने वेतन से सास का भरण-पोषण करने के लिए शपथ पत्र दे दिया है। अदालत ने कहा, “प्रतिवादी संख्या 5 (सास) को उनकी पारिवारिक स्थिति, तुलनात्मक परेशानियों और दीर्घकालिक प्रतिबद्धताओं के आधार पर याचिकाकर्ता के वेतन से राशि दी जाएगी। इन पहलुओं को ध्यान में रखते हुए, प्रतिवादी संख्या 5 को नियमित आधार पर याचिकाकर्ता के मासिक वेतन का 20 प्रतिशत हिस्सा पाने का हकदार माना जाए।” अदालत के आदेश में कहा गया है, “पारिवारिक विवादों के कारण परिवार के किसी पात्र सदस्य की नियुक्ति के दावे को विफल नहीं किया जा सकता। न ही मृतक के अन्य आश्रितों को ऐसी नियुक्ति से मिलने वाले आर्थिक लाभ से वंचित किया जा सकता।
अदालत ने कहा कि पक्षों के बीच मतभेद से मृतक के परिजनों को कष्ट होगा और अनुकंपा नियुक्ति का उद्देश्य विफल हो जाएगा। याचिकाकर्ता के पति की वाराणसी में स्थित यूको बैंक में ‘सिंगल विंडो ऑपरेटर’ के पद पर कार्यरत रहते हुए मृत्यु हो गई थी। उनके परिवार में एक बेटा और मां हैं। कर्मचारी की मां ने पत्नी की नियुक्ति की अनुमति देने से इनकार कर दिया, जिसके बाद पत्नी को अदालत जाना पड़ा। अदालत ने 21 जुलाई को याचिका का निपटारा कर दिया, जिसके साथ ही पत्नी के लिए अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति का रास्ता साफ हो गया।