संस्कृति और धर्म की रक्षा के लिए हर हिंदू को कम से कम तीन बच्चे पैदा करने चाहिए : आचार्य शांतनु जी महाराज

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कानपुर देहात के कंचौसी बाजार में चल रही श्रीमद्भागवत कथा सप्ताह ज्ञान यज्ञ के चौथे दिन आचार्य शांतनु जी महाराज ने कहा कि हिंदुओं को आने वाले समय के लिए तैयार रहना होगा। यह संख्या की लड़ाई का युग है। यदि हम स्वयं को सुरक्षित और सशक्त देखना चाहते हैं, तो प्रत्येक हिंदू परिवार को कम से कम तीन बच्चे पैदा करने चाहिए। यह केवल परिवार बढ़ाने की बात नहीं है, बल्कि अपनी संस्कृति और धर्म की रक्षा का संकल्प है। उन्होंने यह भी कहा कि समाज में आज भौतिकता और आधुनिकता की होड़ में लोग अपने मूल धर्म से विमुख हो रहे हैं। बच्चे ही भविष्य हैं, और अधिक बच्चे ही भविष्य को मजबूत बनाते हैं। जो धर्म और संस्कृति को बचाना चाहता है, उसे संख्या की अहमियत समझनी होगी।

मांसाहार छोड़ने का आह्वान

अपने प्रवचन में आचार्य जी ने श्रोताओं को जीवन की शुद्धता और आत्मिक बल पर भी संदेश दिया। उन्होंने कहा, मनुष्य को अपने स्वाद की तृष्णा के लिए निर्दोष पशुओं का वध करना बंद करना चाहिए। वेद कभी भी हिंसा का समर्थन नहीं करते। मांसाहार आत्मा को कलुषित करता है और धर्म से दूर ले जाता है। उन्होंने उपस्थित जनसमूह से आग्रह किया कि वे शाकाहार अपनाएँ, क्योंकि यही स्वास्थ्य और आध्यात्मिक प्रगति दोनों का आधार है।

कृष्ण जन्मोत्सव की झलक

श्रीमद्भागवत कथा का चौथा दिन श्रीकृष्ण जन्मोत्सव की अनुपम छटा से भरा रहा। जैसे ही आचार्य शांतनु जी महाराज ने भगवान कृष्ण के जन्म का प्रसंग सुनाया, पूरा कथा पंडाल “नंद के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की” के जयघोष से गूंज उठा। भक्तगण भावविभोर होकर नाचने लगे और महिलाओं ने मंगल गीत गाए। मंच से पुष्प वर्षा हुई। भक्तों ने इसे साक्षात नंदगांव का नंदोत्सव मान लिया। उसी क्षण का दृश्य और भी अद्भुत हो गया जब आचार्य शांतनु जी महाराज ने बालकृष्ण का रूप धरे एक नन्हे शिशु को अपनी गोद में उठाया और नंदलाल की तरह उसे खिलाने लगे। श्रद्धालुओं की आँखें भक्ति से छलक उठीं और वातावरण पूर्णत: कृष्णमय हो गया।

श्रीराम और श्रीकृष्ण की महिमा

कथा के दौरान आचार्य शांतनु महाराज ने भगवान श्रीराम जन्म की कथा का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि श्रीराम का जीवन मर्यादा, त्याग और आदर्श का जीता-जागता उदाहरण है। बिना रामरस के मनुष्य का जीवन वैसे ही है जैसे जल के बिना मछली। इसके साथ ही उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का वर्णन किया। माखन चोरी, बांसुरी की मधुर तान और गोकुल की गलियों के प्रसंग सुनाते हुए आचार्य जी ने कहा कि कृष्ण का जीवन केवल भक्तिभाव का नहीं, बल्कि नीति, धर्म और कर्म का भी पाठ है।

सनातन संस्कृति की सर्वोच्चता

आचार्य जी ने प्रवचन में सनातन संस्कृति की महिमा पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि जैन धर्म सहित अनेक पंथ इसी सनातन परंपरा से उपजे हैं। सनातन धर्म केवल धार्मिक आस्था नहीं, बल्कि जीवन जीने की सर्वोत्तम पद्धति है। उन्होंने एक रोचक प्रसंग सुनाते हुए बताया कि ऋषभदेव के पुत्र और श्रीराम के पूर्वज महाराज भरत के नाम पर ही हमारे देश का नाम भारत पड़ा। “भारत केवल भूभाग का नाम नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति और गौरव का प्रतीक है,” उन्होंने कहा। माता कनकरानी एवं पिता दर्शन सिंह की पुण्य स्मृति में आयोजित हो रही इस श्रीमद्भागवत कथा में अकबरपुर से भारतीय जनता पार्टी के सांसद श्री देवेन्द्र सिंह भोले, विकास सिंह भोले, अध्यक्ष स्वामी विवेकानंद युवा समिति, और अमित सिंह ने परिवार विधिवत हवन-पूजन कर की।

ये लोग रहे मौजूद

कमलावती सिंह, कानपुर के पूर्व मेयर जगतवीर सिंह द्रोंड, कालपी के पूर्व विधायक नरेंद्र जादौन, बिल्हौर विधायक राहुल (काला बच्चा) सोनकर, पप्पू पांडे (पार्षद), उमेश निगम, विभाग प्रचारक कानपुर प्रांत बैरिस्टर जी भाईसाहब सहित सैकड़ों गणमान्यजन श्रद्धालु आज उपस्थित रहे।

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