इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को पुलिस विभाग के भीतर जवाबदेही की एक प्रभावी प्रणाली के लिए नियम बनाने पर विचार करने को कहा। न्यायमूर्ति अजय भनोट ने हत्या के एक मामले में आरोपी और 2014 से जेल में निरुद्ध भंवर सिंह नाम के एक व्यक्ति की जमानत की अर्जी स्वीकार करते हुए यह आदेश पारित किया। अदालत ने कहा, निचली अदालतों द्वारा भेजी गई स्थिति रिपोर्ट से पता चलता है कि चूंकि पुलिस अधिकारियों ने समन की तामील नहीं की और समयबद्ध तरीके से तय तिथि पर गवाहों की पेशी नहीं कराई, इसलिए सुनवाई में विलंब होता रहा।
समन पहुंचाने में राज्य पुलिस की असमर्थता पर अदालत ने कहा, यह एक स्थानिक समस्या है और आपराधिक कानूनी प्रक्रिया में एक बड़ी अड़चन है। इससे लोगों का न्याय तंत्र में भरोसा घटता है। वरिष्ठ पुलिस अधिकारी जिम्मेदारी से मुंह नहीं मोड़ सकते। त्वरित सुनवाई के महत्व पर अदालत ने कहा, भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत त्वरित सुनवाई के आरोपी के अधिकार का हनन किया जा रहा है और पुलिस विभाग की इन विफलताओं के परिणाम स्वरूप जमानत का अधिकार बाधित किया जा रहा है।