मौर्य को बिहार में मिली नई जिम्मेदारी के बाद बदलेगा उत्तर प्रदेश भाजपा का सियासी समीकरण

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उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य इन दिनों चर्चा में हैं। बिहार में मिली शानदार जीत के बाद संगठन ने अब उनको केंद्रीय पर्यवेक्षक की जिम्मेदारी सौंपी है। पार्टी के इस फ़ैसले को मौर्य का क़द बढ़ाये जाने के नज़रिए से देखा जा रहा है। आलाकमान के इस निर्णय के बाद उत्तर प्रदेश के सियासी गलियारे में तरह-तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं। दरअसल बिहार में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) विधायक दल का नेता चुनने के लिए उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री मौर्य को केंद्रीय पर्यवेक्षक नियुक्त किए जाने के बाद प्रदेश भाजपा की राजनीति अचानक गरमा गई है।

अब तक इसे महज नियमित संगठनात्मक प्रक्रिया माना जा रहा था, क्योंकि बिहार विधानसभा चुनाव में उन्हें सह-प्रभारी बनाया जाना कोई नई बात नहीं थी। इससे पहले महाराष्ट्र चुनाव में भी वे इसी तरह की जिम्मेदारी संभाल चुके थे। मौर्य की इस बार की नियुक्ति को राजनीतिक गलियारों में अलग नजरिये से देखा जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, यह कदम राष्ट्रीय भाजपा संगठन में उनकी बढ़ती उपयोगिता और प्रभाव का संकेत है। पार्टी संगठन में राष्ट्रीय और प्रदेश स्तर पर लंबे समय से लंबित फेरबदल की चर्चा दोबारा तेज हो गई है, हालांकि बदलाव कब होंगे, इस पर अब भी संशय बना हुआ है। भाजपा के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने मौर्य की बढ़ती भूमिका को लेकर कहा कि यह प्रभाव धीरे-धीरे लेकिन स्थायी हो सकता है।

उन्होंने कहा, हमे लगता है कि केंद्रीय नेतृत्व जिस तरह से उनको सामने लाकर क़द बढ़ाने का काम कर रहा है उससे ये संभावना है कि आने वाले समय में राज्य में उनकी भूमिका अहम हो सकती है। इधर, विशेषज्ञों का मानना है कि तत्काल तौर पर यह नियुक्ति मौर्य की छवि को उत्तर प्रदेश में नई ऊर्जा देगी। उनके कार्यकर्ता भी इसे मनोबल बढ़ाने वाला कदम मान रहे हैं। हालांकि समर्थकों में यह आशंका भी है कि यदि यह तात्कालिक प्रभाव आगे किसी स्थायी जिम्मेदारी में नहीं बदला, तो इसका असर धीरे-धीरे कम भी हो सकता है। भाजपा के एक पूर्व राष्ट्रीय महासचिव ने कहा, मौर्य को फिलहाल केंद्रीय राजनीति में लाने की कोई योजना नहीं है। 2027 के विधानसभा चुनावों तक उनकी जरूरत यूपी में बनी रहेगी। पार्टी के भीतर संतुलन बनाए रखने में भी उनकी भूमिका को महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

एक राजनीतिक विश्लेषकों ने कहा, कुछ वर्ष पहले तक बड़ी संख्या में कार्यकर्ता अपनी समस्याओं के समाधान के लिए मौर्य की ओर देखते थे। उनके कद में वृद्धि के संकेत मिलते ही एक बार फिर 7, कालिदास मार्ग पर कार्यकर्ताओं की आवाजाही बढ़ सकती है। बिहार विधानसभा का चुनाव समाप्त होते ही भाजपा संगठन के भीतर संभावित बदलावों को लेकर कयासों का बाजार गर्म है। संगठन के भीतर लंबे समय से मौजूद लोग भी मानते हैं कि मौर्य की संगठनात्मक भूमिका बढ़ाए जाने की संभावना को नकारा नहीं जा सकता। कुल मिलाकर, बिहार में पर्यवेक्षक की भूमिका ने मौर्य की राजनीतिक सक्रियता को नया आयाम दिया है और ऐसी संभावना है कि उत्तर प्रदेश भाजपा के अंदरूनी समीकरणों पर भी इसका सीधा प्रभाव आने वाले समय में देखने को मिलेगा।

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