बेटा-बेटी में भेदभाव अधर्म है, मित्रता ही जीवन का सबसे बड़ा रिश्ता है: आचार्य शांतनु महाराज

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कानपुर देहात। बेटा और बेटी में कोई भेदभाव नहीं करना चाहिए, दोनों एक समान हैं। बेटी दो कुलों की शोभा है, वह संस्कारों की धरोहर और भगवान की अनुपम भेंट है। जीवन में सबसे सुंदर और महान रिश्ता मित्रता का है, जो रक्त से नहीं बल्कि हृदय से जुड़ता है। सच्चा मित्र वही है, जो सुख-दुःख में साथ खड़ा रहे और धर्म के मार्ग पर प्रेरित करे। यह संदेश सोमवार को श्रीमद्भागवत कथा सप्ताह ज्ञान यज्ञ के पांचवें दिन पर आचार्य शांतनु महाराज ने कथा के दौरान हजारों श्रद्धालुओं को दिया।

दर्शन सिंह स्मृति महाविद्यालय, कंचौसी बाजार में चल रहे इस आयोजन में आचार्य शांतनु महाराज ने भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का भावपूर्ण वर्णन करते हुए कहा कि हर मनुष्य को पारिवारिक सुख भोगते हुए भी प्रभु स्मरण को कभी नहीं भूलना चाहिए। उन्होंने कहा कि भागवत कथा केवल धर्मग्रंथ का पाठ नहीं, बल्कि जीवन का विज्ञान है, जो हमें जीने की सही दिशा दिखाती है।

आचार्य शांतनु महाराज ने विशेष रूप से समाज में प्रचलित बेटे और बेटी के भेदभाव पर चिंतन कराया। उन्होंने श्लोक का हवाला देते हुए कहा— ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता’। अर्थात जहां स्त्री और कन्या का सम्मान होता है, वहीं देवताओं का वास होता है। बेटा केवल एक कुल का मान बढ़ाता है, किंतु बेटी मायके और ससुराल दोनों कुलों का गौरव बढ़ाती है। माता सीता का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि उन्होंने जनक और रघुकुल दोनों को सम्मानित किया। अतः कन्या को बोझ नहीं, वरदान मानना चाहिए और उसे शिक्षा व संस्कार देने में कभी भेदभाव नहीं होना चाहिए।

मित्रता की पवित्रता पर भी डाला प्रकाश
इसी क्रम में आचार्य शांतनु महाराज ने मित्रता की पवित्रता पर भी प्रकाश डालते हुए श्रीकृष्ण-सुदामा और श्रीकृष्ण-अर्जुन के प्रसंग सुनाए। उन्होंने कहा कि मित्रता केवल साथ घूमने-फिरने या हँसी-मजाक तक सीमित नहीं है, बल्कि उसका अर्थ है सुख-दुःख में साथ देना और धर्म-सत्य के मार्ग पर एक-दूसरे को प्रेरित करना। संस्कृत श्लोक उद्धृत करते हुए उन्होंने कहा— “सुखे दुःखे च यो मित्रं भवेच्च सुमनाः सदा। सः मित्रं परमं ज्ञेयं प्राणैरपि सुहृद्भवेत्॥” अर्थात सच्चा मित्र वही है, जो हर परिस्थिति में समान भाव से खड़ा रहे और प्राणों से भी बढ़कर मित्र का हित चाहे। उन्होंने बताया कि जब निर्धन सुदामा द्वारका पहुँचे तो भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें गले लगाकर यह संदेश दिया कि सच्ची मित्रता में अमीरी-गरीबी या ऊँच-नीच का कोई स्थान नहीं होता। गीता में भी भगवान ने अर्जुन को “भक्त और सखा” कहकर इस अनोखे संबंध की पवित्रता को स्थापित किया।

16 संस्कारों का भी किया वर्णन

कथा के दौरान आचार्य शांतनु महाराज ने सोलह संस्कारों का भी विस्तार से वर्णन किया और कहा कि यदि माता-पिता अपनी संतान को इन संस्कारों की थाती सौंपेंगे तो वही पीढ़ियाँ सनातन संस्कृति को आगे बढ़ाएँगी। उन्होंने कहा कि धर्म, संस्कार और संस्कृति का संरक्षण ही हिंदुत्व को जीवित रखेगा और यही भारतभूमि की असली पहचान है।

गूंजते रहे जय श्री राम और जय श्री कृष्ण के जयकारे

पूरे दिन कथा स्थल पर भजन-कीर्तन, हवन-पूजन और प्रसाद वितरण का क्रम चलता रहा। श्रद्धालु कथा में डूबकर “जय श्रीराम” और “जय श्रीकृष्ण” के जयकारों से वातावरण को गुंजायमान करते रहे। इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में अकबरपुर के सांसद देवेंद्र सिंह भोले, उनकी धर्मपत्नी प्रेमशीला सिंह और युवा नेता स्वामी विवेकानंद युवा समिति के अध्यक्ष विकास सिंह भोले उपस्थित रहे। श्रीमद् भागवत कथा में कानपुर नगर के सांसद रमेश अवस्थी, विधायक महेश त्रिवेदी, भाजपा कानपुर उत्तर के जिला अध्यक्ष अनिल दीक्षित, ब्लॉक प्रमुख अनुराधा अवस्थी और राकेश कटिहार, पूर्व जिला अध्यक्ष श्याम सिंह सिसौदिया समेत सैकड़ों श्रद्धालु और गणमान्यजन भी उपस्थित रहे।

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