ध्रुव चरित्र से शुरू हुई भागवत कथा की अमृतधारा, भक्त प्रह्लाद और नरसिंह अवतार प्रसंग ने बांधा समां

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कानपुर देहात। कंचौसी बाजार स्थित दर्शन सिंह स्मृति महाविद्यालय का प्रांगण शुक्रवार को श्रीमद्भागवत कथा की रसधारा से सराबोर रहा। कथा का वाचन पूज्य कथावाचक आचार्य शांतनु जी महाराज के मुखारविंद से हुआ। आचार्य जी ने कहा “भागवत कथा कोई साधारण ग्रंथ नहीं, यह मानव जीवन का दर्पण है। जो व्यक्ति इसके प्रत्येक चरित्र से सीख लेकर जीवन में उतार लेता है, वह निश्चित ही परमपद को प्राप्त करता है। कथा के दूसरे दिन का प्रारंभ ध्रुव चरित्र से हुआ। आचार्य शांतनु जी महाराज ने बताया कि कैसे पांच वर्षीय ध्रुव ने सांसारिक अपमान के बाद वन में तपस्या की और भगवान विष्णु की कृपा से अमर पद पाया। यह चरित्र बताता है कि दृढ़ निश्चय और अटूट भक्ति से असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है। उन्होंने कहा— “ध्रुव ने संसार को दिखा दिया कि बालक भी यदि संकल्प कर ले तो प्रभु को पाकर जीवन को सार्थक बना सकता है।

भक्त प्रह्लाद और नरसिंह अवतार

इसके बाद शांतनु जी महाराज ने भक्त प्रह्लाद का चरित्र सुनाया। हिरण्यकश्यप जैसे अत्याचारी पिता के बावजूद प्रह्लाद ने भगवान विष्णु की भक्ति का त्याग नहीं किया। शांतनु जी महाराज ने कहा कि प्रह्लाद बतलाते हैं कि सच्चा भक्त विपरीत परिस्थितियों में भी भगवान का नाम नहीं छोड़ता।” इसी प्रसंग में जब अत्याचार की सीमा पार हुई तो भगवान ने नरसिंह अवतार लेकर प्रह्लाद की रक्षा की और हिरण्यकश्यप का अंत किया। नरसिंह प्रसंग का जीवंत वर्णन सुनकर श्रद्धालु भावविभोर हो उठे।

भगवान के 24 अवतार और उनका महत्व

कथा में आगे भगवान विष्णु के 24 अवतारों का विस्तृत वर्णन किया गया। आचार्य जी ने बताया कि प्रत्येक अवतार का उद्देश्य लोककल्याण और धर्म की रक्षा था। मत्स्य से लेकर वामन और राम से लेकर कृष्ण तक, हर अवतार हमें जीवन की कठिनाइयों से जूझने की प्रेरणा देता है। उन्होंने कहा “अवतार कथा केवल धार्मिक आख्यान नहीं, बल्कि जीवन प्रबंधन की शिक्षा है।

निष्काम भक्ति का मार्ग

आचार्य शांतनु जी महाराज ने इस अवसर पर निष्काम भक्ति पर विशेष जोर दिया। उन्होंने कहा— “भक्ति का अर्थ है—ईश्वर की उपासना बिना किसी स्वार्थ के। जब भक्त केवल प्रभु प्रेम में लीन होता है, तभी उसे परम शांति मिलती है।” कथा के दौरान कई श्रद्धालु इस उपदेश पर तालियों की गड़गड़ाहट से सहमति जताते नजर आए।

परीक्षित जन्म और पांडव स्वर्गारोहण

कथा के क्रम में आचार्य जी ने राजा परीक्षित के जन्म की कथा भी सुनाई। उन्होंने बताया कि अभिमन्यु के गर्भस्थ शिशु को भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रह्मास्त्र से बचाया और वही बालक आगे चलकर परीक्षित के नाम से प्रसिद्ध हुआ। पांडवों के स्वर्गारोहण प्रसंग का भी विस्तार से वर्णन हुआ, जिसमें त्याग, सत्य और धर्मपालन का संदेश स्पष्ट रूप से सामने आया। अकबरपुर लोकसभा क्षेत्र के सांसद देवेंद्र सिंह भोले ने कहा— “माता-पिता के आशीर्वाद और संस्कार ही हमें समाज व राष्ट्र की सेवा की प्रेरणा देते हैं। इस कथा के आयोजन का उद्देश्य है कि अधिक से अधिक लोग धर्म की ओर आकर्षित हों।

केंद्रीय राज्यमंत्री भी पहुंचे कथा में

कथा के दौरान भारत सरकार के उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के केंद्रीय राज्यमंत्री बी.एल. वर्मा भी पधारे। उनका स्वागत स्वामी विवेकानंद युवा समिति के अध्यक्ष विकास सिंह भोले और डॉ. अमित सिंह ने स्मृति चिन्ह देकर किया।

श्रद्धालुओं की भीड़ और आस्था का समंदर

दूसरे दिन की कथा में दूर-दराज से आए श्रद्धालुओं की भारी भीड़ रही। महिलाएं मंगल गीत गाती रहीं तो पुरुष भावविभोर होकर कथा सुनते रहे। बच्चों में भी उत्साह देखने को मिला। कथा स्थल पर शांति, अनुशासन और भक्ति का अद्भुत वातावरण था।

आत्मचिंतन और जीवन सुधार के लिए आवश्यक

आचार्य शांतनु जी महाराज ने श्रद्धालुओं से अपील की कि कथा का श्रवण केवल आनंद के लिए नहीं, बल्कि आत्मचिंतन और जीवन सुधार के लिए किया जाए। कथा का यह आयोजन आगामी 1 अक्टूबर तक चलेगा। प्रतिदिन अलग-अलग प्रसंगों की व्याख्या की जाएगी और श्रद्धालुओं को भक्ति मार्ग पर अग्रसर होने का अवसर मिलेगा।

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