उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री बाबा योगी आदित्य नाथ की लोकप्रियता हिंदुत्ववादी चेहरे के तौर पर लगातार बढ़ रही है। लेकिन बाबा का बढ़ता कद क्या उनके लिए उल्टा भी पड़ सकता है? ये सवाल इसलिए खड़ा हो रहा है क्योंकि पार्टी में ही एक तबका लगातार उनकी कार्यशैली को कठघरे में खड़ा करने में जुटा है।
अंजना शर्मा
उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री बाबा योगी आदित्य नाथ की लोकप्रियता हिंदुत्ववादी चेहरे के तौर पर लगातार बढ़ रही है। लेकिन बाबा का बढ़ता कद क्या उनके लिए उल्टा भी पड़ सकता है? ये सवाल इसलिए खड़ा हो रहा है क्योंकि पार्टी में ही एक तबका लगातार उनकी कार्यशैली को कठघरे में खड़ा करने में जुटा है। पूर्व नौकरशाह ए के शर्मा को यूपी भेजे जाने के बाद ये अटकलें और तेज हो गई हैं कि शायद योगी आदित्यनाथ पर नकेल कसने की कोशिश शुरू हो गई है।
दरअसल योगी आदित्यनाथ जिस तरह से हिंदुत्व का चेहरा बनकर उभरे हैं उसे देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बाद उन्हें पार्टी में स्वाभाविक नेता के तौर पर देखा जाने लगा है। उनकी ये छवि प्रदेश में बैठे कई नेताओं को अखरने लगी है। जबकि चर्चा ये भी है कि मोदी से तुलना और मोदी के बाद नम्बर 2 की छवि पर हो रही चर्चा को शीर्ष नेतृत्व भी ज्यादा आगे नही बढ़ने देना चाहता।
दरअसल पार्टी में बड़ा तबका मोदी के बाद अमित शाह को नेता मानती है। अमित शाह ने धारा 370 खत्म करने जैसे बड़े फैसलों से अपने बड़े कद को पुख्ता किया है। लेकिन सीएए और अब किसान आंदोलन के प्रति नरमी का भाव हिंदुत्ववाद के पुरोधाओं को रास नही आ रही। वे अब हर जगह योगी मॉडल की दुहाई देने लगे हैं। लव जिहाद से लेकर सीएए तक जिस सख्ती से योगी ने अपनी हिंदुत्ववादी छवि को पुख्ता किया वह देश भर में चर्चा का विषय बनी है।
ताजा उदाहरण तांडव वेब सीरीज का है जिसे लेकर हिंदुत्व वादी खेमे में बवाल मचा तो पहला एक्शन योगी आदित्यनाथ सरकार ने लिया। एफआईआर दर्ज की गई।
लेकिन योगी विरोधी खेमा उन्हें लचर प्रशासनिक पकड़ और जातिवाद के लेवल के आधार पर घेर रहा है। योगी होते हुए भी एक जाति विशेष के लोगों को संरक्षण का आरोप और हाथरस जैसे मामलो से निपटने में प्रशासनिक अक्षमता पार्टी में ही योगी विरोधियों के लिए बड़ा हथियार है।
सरकार के मुखिया होते हुए भी संगठन में योगी का पकड़ न बना पाना उनके नेतृत्व की कमजोरी बना है। अमित शाह का कवच लेकर सुनील बंसल ने कभी भी बाबा को पार्टी में पकड़ बनाने का मौका नही दिया। लोकप्रिय होते हुए भी बाबा को इसी प्रदेश में सीएम रह चुके कल्याण सिंह या राजनाथ सिंह जैसी स्वतंत्रता प्रदेश के मामले में कभी नही मिली।
पार्टी की बैठकों में बाबा ज्यादातर चुप ही रहते हैं जबकि बंसल का गुट हावी रहता है। उपमुख्यमंत्री केशव मौर्य के समर्थन से पार्टी में बंसल की ही जमकर चलती है। वही सरकार में भी बाबा के फैसलों का बचाव उनके ज्यादातर सीनियर मंत्री नही करते। हाथरस मामले में जब बाबा उलझे थे तो खुद उन्हें अपने विश्वासपात्र लोगों को बचाव में मैदान में उतारना पड़ा था।
फिलहाल ए के शर्मा की एंट्री ने बाबा खेमे को और नाराज किया है। माना जा रहा है कि इसे सीधे सीधे योगी की छवि को प्रभावित करने की कोशिश के रूप में देखा गया है। नाराज बाबा ने शर्मा को एक दिन तक मिलने का समय भी नही दिया। वे इस बात से खफा हैं कि शर्मा को डिप्टी सीएम के रूप में प्रोजेक्ट करने की कोशिश हो रही है।
प्रदेश में मंत्रिमंडल का विस्तार होना है। आला नेतृत्व की राय और मंत्रिमंडल के चेहरे को लेकर मोदी शाह की ख्वाहिश खुद भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा योगी आदित्यनाथ को बताएंगे। नड्डा अभी भी शाह की छाया से नही निकल पाए हैं। इसलिए यूपी में जो कुछ होगा उसमे उनकी पसंद नापसंद बहुत मायने नही रखेगी। खैर उत्तरप्रदेश की सियासत अगले एक साल बहुत दिलचस्प होगी। नजर बनाए रखिये।