बांदा/महोबा/लखनऊ।* पिछले कई सालों से सूखे की मार झेल रहे बुंदेलखंड के लिए योगी सरकार की कुंआ-तालाब योजना और किसानों की मेढ़बंदी वरदान साबित हो रही है। जिससे बुदंलेखंड में अब नया नारा गूंज रहा है। “मन में मेढ़बंदी, दिमाग में कुंआ-तालाब।“ बुंदेलखंड के किसान इसी नारे को अपना कर्मवाक्य बनाकर न केवल अपनी जीवनशैली में बदलाव ला रहे हैं, बल्कि उन जगहों पर बासमती धान पैदा कर रहे हैं, जहां कभी सूखा पड़ा रहता था।
*“दिमाग में कुंआ, मन में मेढ़बंदी”, फिर से खुशहाल हो गए बुंदेलखंडी*
*कई सालों से सूखे की मार झेल रहे बुंदेलखंड के लिए योगी सरकार की कुंआ-तालाब व मेढ़बंदी योजना बनी वरदान*
*योगी सरकार की कुंआ-तालाब योजना शुरू होने से बुंदेलखंड से रुका पलायन*
*बुंदेलखंड में अब किसानों के लिए पानी नहीं है परेशानी, सूरत-दिल्ली जाने की बजाए अब गांव में कर रहे हैं किसानी*
*बुंदेलखंड के किसानों ने दिया नारा- “खेत में मेढ़ बनाओ, मेढ़ पर पेड़ लगाओ”*
*बिना बारिश के बुंदेलखंड के इस गांव के किसानों ने 18 हजार कुंतल पैदा किए बासमती धान*
*बांदा/महोबा/लखनऊ।* पिछले कई सालों से सूखे की मार झेल रहे बुंदेलखंड के लिए योगी सरकार की कुंआ-तालाब योजना और किसानों की मेढ़बंदी वरदान साबित हो रही है। जिससे बुदंलेखंड में अब नया नारा गूंज रहा है। “मन में मेढ़बंदी, दिमाग में कुंआ-तालाब।“ बुंदेलखंड के किसान इसी नारे को अपना कर्मवाक्य बनाकर न केवल अपनी जीवनशैली में बदलाव ला रहे हैं, बल्कि उन जगहों पर बासमती धान पैदा कर रहे हैं, जहां कभी सूखा पड़ा रहता था। यहां के किसान अब ऐसे खेतों में हरी सब्जियां उगा रहे हैं, जहां कभी हल नहीं चल सकते थे।
योगी सरकार की कुंआ-तालाब योजना के साथ साथ बुंदेलखंड के किसानों ने मेढ़बंदी को फिर से जिंदा कर दिया। जिससे उनके खेतों में अब भरपूर जल संरक्षण हो रहा है। नतीजन, उनके खेत अब सूखाग्रस्त न रहकर उपजाऊ हो गए हैं। इसका सुखद परिणाम यह रहा है कि अब बुंदेलखंड के इन गांवों से पानी के कारण पलायन नहीं हो रहा है। बल्कि जिस तरह से खेतों में फसल और सब्जियां लहलहा रही हैं, उसे देख कर पलायन कर गए लोग वापस लौट आए हैं। जो कुछ साल पहले सूरत और मुंबई में हाथगाड़ी खींचने लिए मजबूर थे, वे अब अपने गांव वापस आकर मजबूती के साथ खेती कर रहे हैं।
बांदा ज़िले का जखनी गांव आज पूरे बुंदेलखंड के लिए “माडल विलेज” बन गया है। यह वही गांव है, जहां के लोग रोजगार के लिए सूरत, मुंबई, पंजाब और दिल्ली पलायन कर गए थे, लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की राज्य में सरकार आने के बाद कुंआ-तालाब योजना ने पलायन पर रोक लगाई है। किसानों को हौसला मिला, वे वापस लौटे और उन्होंने खेती के लिए प्रयास शुरू किया। किसानों ने परंपरागत खेती के फार्मूले को अपना कर मेढ़बंदी की शुरूआत की। इससे जहां खेतों में वर्षा जल संचयन से भू-जल स्तर में सुधार हुआ, वहीं कुंआ और तालाब की सफाई के बाद उसमें भी बारिश का पानी रुकने लगा।
बांदा के जखनी गांव में आज पानी की कोई कमी नहीं है। यहां कुंए और तालाब पानी से लबालब भरे हैं, खेतों में धान-गेहूं और सब्ज़ियों की जमकर खेती हो रही है और हैंड पैंपों में हर समय पानी आता है। बासमती धान की पैदावार बढ़ी है, हरी सब्जियों का पैदावार इतना है, कि उन्हें पूरे बुंदेलखंड में सप्लाई किया जा रहा है। जखनी का परवल बुंदेलखंड ही नहीं, बल्कि पूरे उत्तर प्रदेश और दिल्ली की सब्जी मंडी में प्रसिद्ध है।
*अली और अवस्थी मिलकर चला रहे हैं मेढ़बंदी*
जखनी के अली मोहम्मद और अशोक अवस्थी मिलकर बुंदेलखंड को सूखा ग्रस्त प्रदेश वाली छवि को बदलने में जुटे हैं। जखनी के अली और अवस्थी की मेढ़बंदी वाली योजना पूरे बुंदेलखंड में प्रभावी हो रही है। मेढ़बंदी को अब बुंदेलखंड के किसान अपने खेतों में कर रहे हैं, जिससे बारिश का पानी उनके खेतों में देर तक रुक रहा है। अशोक अवस्थी कहते हैं कि पहले खेती नहीं हो रही थी, हाईस्कूल पास करने के बाद नौकरी करने सूरत चला गया। उनके साथ कई और लोग भी सूरत पलायन कर गए थे। मुझे अपना घर छोड़ने का दुख था, मैंने सूरत के किसानों को खेती करने देखा, उनकी पद्धति अच्छी लगी। हम लोग गांव वापस लौटे और परंपरागत तरीक़े से ही खेती शुरू की। मेढ़बंदी के बाद हमारे खेत उपजाऊ बन गए। हमारे खेत में बहुत अच्छी पैदावार हुई। फिर हमने दूसरे लोगों को प्रोत्साहित किया। इसका सुखद परिणाम यह रहा कि गांव के दिलेर सिंह, मामून खान, निर्भर सिंह, दिनेश तिवारी, अली मोहम्मद समेत दर्जनों युवा अपने गांव लौट आए।
जखनी गांव के साथ लगते जमरेही, सहवां, घुरैडा, बडसड़ा खुर्द, बड़सड़ा बुजुर्ग, छिवांवा और खुरंहट पुरवा में करीब 10 हजार बीघे में मेढ़बंदी करवाई गई है। इससे इन गांवों के किसान की पैदावार बढ़ रही है। इन किसानों का साफ कहना है कि बुंदेलखंड ही नहीं पूरे देश में अगर कोई इलाका सुखाग्रस्त है, तो वहां के लोगों को खेतों में मेढ़बंदी कर उस पर पेड़ लगाने की पद्धति को अपनाना चाहिए।
*गांव के गंदे पानी को नालियों के जरिए खेत में पहुंचा कर उगा रहे हैं हरी सब्जियां*
गांव की शांति कुशवाहा और उनके पति राम विशाल कुशवाहा अपने खेत में बैंगन, लौकी, तुरई जैसी सब्ज़ियां उगा रहे हैं। शांति कुशवाहा कहती हैं कि उनके पति नौकरी के लिए कभी दिल्ली तो कभी पंजाब जाते थे। घर में हम लोग अकेले रहते थे। लेकिन हमने अपने गांव में ही कुछ करने को ठानी। सरकार ने हमारी मदद की, सूखे कुंए और तालाब को साफ करवाया। नालियों की सफाई करवाई। गांव के लोगों द्वारा उपयोग किए गए पानी को नालियों को जरिए वे अपने सब्जी के खेत तक ला रहे हैं। अब गंदे पानी को बेकार नहीं जाने दिया जाता है, उसी पानी से वे सब्जियां उगा रहे हैं। कुशवाहा ने इस साल छह लाख रुपये का बासमती चावल भी बेचा है। रामविशाल कुशवाहा कहते हैं कि हम लोग इतनी सब्ज़ी उगाते हैं कि पूरे बांदा में हमारे गांव की सब्ज़ी मशहूर है।
गांव के ही उमाशंकर पांडेय कहते हैं कि बुंदेलखंड में पानी का संकट नहीं है। पहले ऐसा था, कई इलाकों में पानी की कमी थी। क्योंकि हम लोगों ने अपने पूर्वजों द्वारा की गई खेती को भूल गए थे। हमारे पूर्वजों ने इसका जो समाधान ढूंढ़ा था, हमने उसी के जरिए खेती शुरू की। हम लोगों ने जल ग्राम समिति बनाकर अपने गांव के पुराने तालाबों और कुंओं के जीर्णोद्धार का बीड़ा उठाया। इसमें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार ने पूरा सहयोग किया। सरकार के सहयोग से कुंओं की सफ़ाई की, तालाबों को संरक्षित किया गया। दूसरा हम लोगों ने खेतों की मेड़बंदी की और नालियों के पानी को खेतों तक पहुंचाया। जिससे भू-जल स्तर सुधरा और हमारे खेत लहलहा उठे। इस साल किसानों ने अकेले जखनी गांव में सिर्फ़ बासमती चावल ही 18 हज़ार कुंतल का उत्पादन किया है। गांव के किसानों ने अब 21 हज़ार कुंतल बासमती चावल पैदा करने का टारगेट रखा है।